सुप्रीम कोर्ट ने 13-वर्षीया नाबालिग से बलात्कार के आरोपी उत्तर प्रदेश के एक पुलिस अधिकारी को जमानत देने से इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। चार लोगों ने पीड़िता का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया था, जिसकी शिकायत करने के लिए उसे संबंधित थाने लाया गया था, जहां तत्कालीन थाना प्रभारी ने भी कथित तौर पर लड़की के साथ बलात्कार किया था। Supreme Court ने कहा कि थाना प्रभारी रहे अधिकारी को दी गई जमानत को उचित ठहराने का कारण नहीं है जिसने नाबालिग लड़की से बलात्कार के जघन्य अपराध को अंजाम देने के लिए कथित रूप से अपने आधिकारिक पद का गंभीर रूप से दुरुपयोग किया है।
न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने उच्च न्यायालय के पिछले साल दो मार्च के आदेश को चुनौती देने वाली पीड़िता की मां की याचिका पर यह आदेश दिया है। पीठ ने शुक्रवार को पारित अपने आदेश में कहा कि प्रतिवादी संख्या-एक ने एक थाने का प्रभारी होने के बावजूद नाबालिग पीड़िता के साथ कथित रूप से वही जघन्य अपराध किया, जिसके खिलाफ उसे न्याय दिलाने के लिए थाने लाया गया था। आदेश में कहा गया है, “मौजूदा मामले में, उच्च न्यायालय को उसकी (एसएचओ की) जमानत अर्जी पर सरसरी मूल्यांकन करने के बजाय अच्छी तरह से गौर करना चाहिए था। हमें इस स्तर पर प्रतिवादी संख्या एक को जमानत दिए जाने को उचित ठहराने का कोई कारण नजर नहीं आया।”
पीठ ने पीड़िता की मां द्वारा दायर अपील स्वीकार कर ली और हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। पीठ ने निर्देश दिया कि आरोपी को तुरंत आत्मसमर्पण करना होगा, अन्यथा राज्य सरकार उसे पकड़ने और न्यायिक हिरासत में भेजने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी। मामले में पीड़िता की मां की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एच. एस. फुल्का पेश हुए। आरोपी के खिलाफ की बलात्कार समेत अन्य धाराओं के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) कानून 1989 के तहत मामला दर्ज है। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष के अनुसार, नाबालिग लड़की को चार लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के सिलसिले में 27 अप्रैल 2022 को थाना प्रभारी के संरक्षण में रखा गया था। उन चारों पर लड़की ने सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया था।